नवरात्र के 9 दिन भक्ति और साधना के लिए बहुत पवित्र माने गए है। नवरात्र के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है। हम आज आपको माँ शैलपुत्री की कहनी बताएँगे। माँ शैलपुत्री हिमालय की पुत्री है। हिमालय को पर्वतो का राजा माना गया है। वह अडिग है उसे कोई हिला नहीं सकता। जब हम भक्ति का रास्ता चुनते है तो हमारे मन में भी भगवान् के लिए इसी तरह अडिग विश्वास होना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते है। इसी कारण नवरात्र के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
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माँ शैलपुत्री की कहानी
माँ का एक नाम सती भी है। इनकी कहानी इस प्रकार है – एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओ को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान् शिव को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी की उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थी, लेकिन भगवान् शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई निमंत्रण नहीं आया हैं और इसीलिए वहा जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानी और बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रही। सती के न मानने की वजह से भगवान् शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी।
सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहाँ पहुँची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए है और सिर्फ उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया। उनकी बाकी बहने उनका उपहास उड़ा रही थी और सती के पति भगवान् शिव को भी तिरस्कृत कर रही थी। स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका न छोड़ा। ऐसा व्यवहार देख सती दुःखी हो गयी। अपना और अपने पति का अपमान उनसे सहन न हुआ और फिर अगले ही पल उन्होंने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना स्वयं दक्ष ने भी नहीं की थी।
सत्ती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान् शिव को जैसे ही इस बारे में पता लगा तो वो बहुत दुःखी हुए। दुःख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए शिव ने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। इसी सत्ती ने फिर हिमालय के यहाँ जन्म लिया और वहा जन्म लेने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
माँ शैलपुत्री का नाम पार्वती भी है। इनका विवाह भी भगवान् शिव से हुआ।
माँ शैलपुत्री का वास
माँ का वास काशी नगरी वाराणशी में माना जाता है। यहाँ माँ शैलपुत्री का एक बेहद प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में ,मान्यता है की यहाँ माँ शैलपुत्री के सिर्फ दर्शन से ही लोगो की साड़ी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। कहा तो यह भी जाता है की नवरात्र के पहले दिन यानी प्रतिपदा को जो भी भक्त माँ शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कस्ट दूर हो जाते है। चुकी माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हे वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके बाए हाथ में कमल और दाए हाथ में त्रिशूल रहता है।
क्रेडिट – दैनिक भाष्कर
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