आज नवरात्री के दूसरे(2nd) दिन जानिए माँ ब्रह्मचारिणी की कहानी

माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का है। यहाँ ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी – तप का आचरण करने वाली। कहा भी है – वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म – वेद, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ है।

माँ ब्रह्मचारिणी
माँ ब्रह्मचारिणी

विस्तार

नवरात्री शुरू हो चुकी है और आज नवरात्री का दूसरा दिन है। नवरात्री एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है – नौ रात। इन नौ रातो और दस दिन के दौरान शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवा दिन दशहरा मनाया जाता है। माँ दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी का है। यहाँ ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी – तप का आचरण करने वाली। कहा भी है – वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म – वेद, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाए हाथ में कमंडल रहता है।

जन्म की कथा

अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान् शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हे तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल, मूल खाकर व्यतीत किये और सौ वर्षो तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के निचे वर्षा और धुप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हजार वर्षो तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वे भगवान् शिव की आराधना करती रही।

इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोर दिया और कई हजार वर्षो तक वे निर्जल और निराहार तपस्या करती रही। पत्तो को भी खाना छोर देने के कारण उनका एक नाम ‘अर्पणा’ भी पड़ गया। कई हजार वर्षो की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो उठा , उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुःखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज दी ‘उ मा’। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनो लोको मे हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि, सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे।

अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा – ‘हे देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की है। तुम्हारे इस आलोकक कृत्य की चारो ओर सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति रूप में प्राप्त अवश्य होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हे बुलाने आ रहे है।’

पूजा का लाभ

देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना से अनंत फल की प्राप्ति एवं लय, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम, जैसे गुणों की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षो में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। लालसाओं से मुक्ति के लिए माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाना अच्छा होता है।

स्तुति मंत

  1. या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
  2. दधाना कर पद्याभ्याम अक्षमाला कमण्डलु। देवी प्रसीदतु मई ब्रह्म्चारिन्यनुतमा।।

Credit : अमर उजाला

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